,हम भी झोली फैलाए हुए हैं
कुछ पाने की खातिर तेरे दर,
हम भी झोली फैलाए हुए हैं
1, तूने सब कुछ जहां में बनाया ,
चांद तारे सभी आसमां भी
चलते फिरते ये माटी के पुतले,
तूने कैसे सजाए हुए हैं
कुछ पाने की खातिर तेरे दर ,
हम भी झोली फैलाए हुए हैं
2 गुनाहगार कितना हो कोई ,
हिसाब मांगा ना तूने किसी से
तुमने औलाद सबको समझ के,
सब के अवगुण छुपाए हुए हैं
कुछ पाने की खातिर तेरे दर,
हम भी झोली फैलाए हुए हैं
3.जिस पर हो जाए रेहमत तुम्हारी,
मौत के मुंह से उसको बचा लो,
तुमने लाखो हजारों के बेड़े,
डूबने से बचाए हुए हैं
कुछ पाने की खातिर तेरे दर,
हम भी झोली फैलाए हुए हैं
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